Friday, January 30, 2009

एहसास

जिंदगी के सूनेपन को , जरूरत थी एक एहसास की

एहसास जगी तो एक बार फिर , जीने की प्यास लगी


दिख रहा था आसमा मुझे, इन् छोटी सी निगाहों में

पाने की उम्मीद लिए , निकला फिर उन् राहों में


एक डगर से दूजे पे , फिरता रहा बंजारों सा

दिख रही थी एक आकृति , जो था मेरे खयालों सा


दौड़ पड़ा मैं बड़े कदम से, कोशिश की करीब जाने की

हाथ बढाया छूने को तो , ओझल हो गई वो पलछिन सी


चीख पडा तो पाया ख़ुद को , अपने बिस्तर की बाहों में

जिंदगी ने भर ली थी , फिर मुझे अपनी पनाहों में

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