Friday, February 6, 2009

जख्म

तस्वीर के सामने तेरे हम कभी सर रख कर सो जाते
ऐसे ही न जाने हमारे कितने दिन गुजर जाते

प्यार जताने का हमे इल्म ना था वरना
इस तरह लुटाते की अमर हो जाते

देखना ही था अगर मेरी आवारगी का आलम
बोल देती, लहू बनके तेरे रगों में उतर जाते

जाना ही था तुझे तो, आंख मिला के तो जाते
मेरी आँखों में ,दिल के जख्म तो तुझे नजर आते

Monday, February 2, 2009

माँ का क़र्ज़ चुकाना है

लाल हुई धरती मैया का तन , मुझे कैसे करके भी जाना है
आस लेके देखती मैया , बेटा कब तुम आओगे
देर हो चुकी है बहुत , अब मुहे किस हाल में पहुचाओगे

मैला हुआ है उनका आँचल , मैं बेटा कैसे कहलाऊंगा
सरहद पे न ही सही , गलियारों से भेडिया भगाउंगा

भगत सुभाष के कुर्बानी को, आज फिर रंग में लाना है
खून के एक एक कतरे से , माँ को हार चढाना है

सन् ५७ की क्रांति बिगुल , एक बार फिर बजानी है
एक बार फिर मिलके सबको , मैया की लाज बचानी है

जाने दे मुझको अब यारो , मुझे माँ के पास जाना है
देके अपना बलिदान , उनका क़र्ज़ चुकाना है