Saturday, April 4, 2009

शायद

धुंधली हो चुकी है आशाएं , तेरी राह तकते तकते
आंसू है पलकों में , अब शायद बिछा न पाउँगा

धूमिल हो गयी स्वाभिमान , सबके ताने सुनते सुनते
तेरे सजदे में , अब शायद सर झुका न पाउँगा

मिट चुकी है जस्बात , मन को कहते कहते
तुम हो दिल में , अब शायद बहला न पाउँगा

भर चुकी है गमें जिंदगी, तुझे याद करते करते
इस दर्द में, अब शायद मुस्कुरा न पाउँगा

ख़त्म हो गयी ऐतबार, तेरा विश्वास करते करते
झूठे रिश्ते में, अब शायद नाम दे न पाउँगा

रो चुकी है बहुत आँखें, तेरी यादों में जीते जीते
खुश्क आँखों में बूंद, अब शायद बहा न पाउँगा

टूट चुकी है साँसें , मरने का एहसास करते करते
बिखरे है वादे , अब शायद निभा न पाउँगा

घुस चुकी है कायरता , खुद को थामते थामते
तेरे प्यार में , अब शायद जान दे न पाउँगा

6 comments:

  1. ख़त्म हो गयी ऐतबार, तेरा विश्वास करते करते
    झूठे रिश्ते में, अब शायद नाम दे न पाउँगा ....

    Bahut sahi line :)..

    Bahut achchhe se bhav nikal padha hai shabdo ke jariye...

    Bhut ko bhula ke aage badh jana hi jindagi hai.

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  2. वाह!! क्या बात है!

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  3. jus a single wrd fr u.....
    fantabulous :)

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  4. thanks bipin , udan tashtari and nehansh

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