Wednesday, October 14, 2009

दरस करा फिर तू

मैंने उन गलियों में रात गुजारी है
जिनमे 'आशा' ने भी हिम्मत हारी है
हर अश्क को मैंने देखा है ,
बिन मांगे दर्द को झेला है
एक मामूल इंसान पिघल गया,
तू पत्थर बन क्यों बैठा है

तेरे नाम से ज्यादा गूंजती
भूके मजबूर की आवाज फिजाओं में
भगवान, है क्या तू इस दुनिया में
एक बार दरस करा फिर तू
बैठा सवालो की पोटरी पे,
आके हमे रास्ता दिखा न तू

सब कहते है तुम हो ,
फिर क्यों बोलबाला शैतानो का
डगमगाते इस विश्वास को
आके रोशनी दिखा न तू
एक बार आके इनको अपने दरस करा फिर तू