Thursday, September 2, 2010

ये कैसा वक़्त है !

ये कैसा वक़्त है ,
न जाने कैसा मौसम है
निकला सीना फूला के , सोच हमारे जेब में बहुत दम है !

लाना था घर के सामान , साथ बच्चों के कुछ अरमान
महीने भर की पगार लेके , चल पड़ा मैं मुंशी की दुकान !
किलो भर जो लिखा था, पौउए में बोल पड़ा मेरा जुबान
क्या करे 'अबे अपनी औकात देख' , बोल पड़ा सामान !

कहके निकला था आज घर से,
मुन्ना की पैंट , मुन्नी की फ्रॉक ,लेंगे आज अब्बाजान
कीमत सुन ऐसा महसूस हुआ
जैसे बित्ते में अब बिकता है , रेशों का भी सामान !

ये कैसा वक़्त है ,
देख रहा है न तू भगवान
मुश्किल हो गया है अब तो, ढकना जिस्म की भी आन !

औधे मुह लौटा हूँ
आज देख सबका ईमान
समय है बेईमान , हो चूका है बेवकूफ इंसान !

जेब में हाथ डाला, सुन चिल्लाते चिल्लर का ये एलान
४ टॉफी लेलो, और सोचो मुस्कुरा के
बच्चो से आज क्या जूठ बोलोगे, ऐ अब्बाजान !

ये कैसा वक़्त है ,
न जाने कैसा मौसम है
खुद की नजरो में गिरना पड़ता है सुबह शाम !

3 comments:

  1. Very true. You've written about the "Mango People" and their conditions. Very nicely written. Hats Off..! :)

    ReplyDelete
  2. Truly said. u have featured one man's(service class) pain in ur words.really time has changed. Thanks for making the vision reality!

    ReplyDelete
  3. बहुत ही उम्दा कविता..

    ReplyDelete