Sunday, February 5, 2012

सूखे पत्ते

ये सूखे पत्ते गुलाब की,
पुस्तक के पन्नो में बेजार से
चुपके चुपके चरमराते ,
कहते है एक वक़्त की कहानी
जब जिंदगी में बस तू थी,
तू ही थी जीने की रवानी
हवा तक थम जाती थी ,
बदल लेती अपना रास्ता
ऐसा प्यार , गुजर न पाती हमारे बीच की जवानी से !!

सब तो याद है अब भी हमे,
पर याद नहीं आता वो साँझ
न जाने किसने बोया,
की प्यार हुआ हमारा बाँझ
क्यों मिला कैसे मिला,
बस मिला है हमे हार
पर ये कैसी हार ?
ये कैसा था हमारा प्यार ?
की तुमने ही थाम ली , मेरे लिए बदले की कटार !!


अब बस बचा रखा है , सूखे पत्ते और वो एहसास
वो पत्ते गुलाब की, जो मेरी जिंदगी सी बेजार हुई !!

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