We run behind clouds, crossing miles - like a musk deer in search of Light.. Earth is round & we end up at same stop & then finally we realise - Light doesn't lie outside but inside..
Saturday, January 15, 2011
तुझे क्या कहूं
ऐ ज़िन्दगी
बता
मैं तुझे क्या कहूं ,
चुप रहूँ , कहूं खुदा ,
या मैं बेवफा कहूं !
कुछ हुई गलतियाँ, कुछ घटे हादसे ,
कुछ मेहरे-खुदा, कुछ अपने हाथ से ,
कुछ पे हंस भी दूं , कुछ पे रो पडू
ज़िन्दगी,
मैं क्या करूँ !
खोने का भी गम मिला, पाने की भी ख़ुशी मिली ,
कभी सब कुछ था , तो कभी कुछ भी नहीं !
तुझे खुद से मैं तोड़ दूँ या तुझे जोड़ दूँ !!
ज़िन्दगी,
मैं क्या करूँ !
कुछ बात नसीबों के है, कुछ हैं हमारे फैसले ,
सुकून दे गए कुछ तो , कुछ बेवजह निकले
खुद को दोष दूँ या तेरा सुक्रिया करूँ,
ज़िन्दगी,
मैं क्या करूँ !
नाम बेनाम तेरा मेरा कोई रिश्ता तो था,
मेरे रोने के साथ , तू भी सिसकता तो था
कुछ पल के लिए ही सही, पर मेरा फ़रिश्ता तो था !!
आज जब कुछ ही पल है बांकी..
ज़िन्दगी,
अब एहसास होता है की मैं तुझे खुदा कहूँ !!
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