Friday, January 30, 2009

सवाल

हर एक के सवाल का मैं, जवाब क्या देता ,
क्या और क्यों हूँ मैं, ये हिसाब क्या देता

जो कुछ पल के एहसास को , ना रख सके महफूज़,
मैं उनके हाथ , अपनी जिंदगी की डोर क्या देता

बदले जिनके रंग ,मौसम से भी पहले,
उनको अपनी चाहत का जाम क्या देता

जो छोर दिए मुझको, बना खुशी को मोहताज़ ,
उस रिश्ते को मैं, अपना नाम क्या देता

हर एक के सवाल का मैं, जवाब क्या देता

अब तो आ जा अपने ननिहाल

माँ ने दी है आवाज ,सुनो मेरे लल्ला ,
धरती हो चुकी है लाल ..
कहाँ हो तुम , अब तो आ जा अपने ननिहाल ..

सूनी बिया मेरी , अब कितना रुलाओगे ..
बेबसी का देके वास्ता ,कब तक मुह छुपाओगे ..

आँखें तरसी मेरी ,क्यों ना आया तुझे मेरा ख्याल ..
अब तो आ जा ,देख अपने घर का हाल

थमने को है साँसे मेरी ,अब तो आके बागडोर संभाल ..
आ जा , अब तो आ जा सुनके मेरे दिल का हाल

आ जा , आ जा मेरे नंदगोपाल ...
अब तो आ जा अपने ननिहाल ..

तमन्ना

जी रहा था जिस् तमन्ना में, हो गई ओझल वही
उठा दाबत लगा बनाने, रह गई तस्वीर अधूरी

लब्जों के इस हेर फेर ने, बना दिया था फ़कीर मुझे
हुई ना पूरी मेरी आरजू , लूट गए अरमान मेरे

जिंदगी के इस उधेरबून में, मिलि एक कोहिनूर मुझे
ख्यालों के मंजर में मैंने , उससे अपने हार बुने

सोच के ही इतराता मैं , मुझे भी ऐसा श्रृंगार मिले
लग रहा था पुरे हो गए , जिंदगी के खवाब मेरे

खिल उठी थी जिंदगी मेरी , उसने ऐसे रंग भरे
दिया तबज्जो मेरे प्यार को , कहके उसने यार मुझे

जी रहा था जिस् तमन्ना में, मिल गई वही मुझे
बिन दबात उठाये, मिल गई पूरी तस्वीर मुझे

एहसास

जिंदगी के सूनेपन को , जरूरत थी एक एहसास की

एहसास जगी तो एक बार फिर , जीने की प्यास लगी


दिख रहा था आसमा मुझे, इन् छोटी सी निगाहों में

पाने की उम्मीद लिए , निकला फिर उन् राहों में


एक डगर से दूजे पे , फिरता रहा बंजारों सा

दिख रही थी एक आकृति , जो था मेरे खयालों सा


दौड़ पड़ा मैं बड़े कदम से, कोशिश की करीब जाने की

हाथ बढाया छूने को तो , ओझल हो गई वो पलछिन सी


चीख पडा तो पाया ख़ुद को , अपने बिस्तर की बाहों में

जिंदगी ने भर ली थी , फिर मुझे अपनी पनाहों में