जिंदगी के सूनेपन को , जरूरत थी एक एहसास की
एहसास जगी तो एक बार फिर , जीने की प्यास लगी
दिख रहा था आसमा मुझे, इन् छोटी सी निगाहों में
पाने की उम्मीद लिए , निकला फिर उन् राहों में
एक डगर से दूजे पे , फिरता रहा बंजारों सा
दिख रही थी एक आकृति , जो था मेरे खयालों सा
दौड़ पड़ा मैं बड़े कदम से, कोशिश की करीब जाने की
हाथ बढाया छूने को तो , ओझल हो गई वो पलछिन सी
चीख पडा तो पाया ख़ुद को , अपने बिस्तर की बाहों में
जिंदगी ने भर ली थी , फिर मुझे अपनी पनाहों में
jo mil gya woh apna hai jo tut gya woh sapna hai....
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