Wednesday, October 14, 2009

दरस करा फिर तू

मैंने उन गलियों में रात गुजारी है
जिनमे 'आशा' ने भी हिम्मत हारी है
हर अश्क को मैंने देखा है ,
बिन मांगे दर्द को झेला है
एक मामूल इंसान पिघल गया,
तू पत्थर बन क्यों बैठा है

तेरे नाम से ज्यादा गूंजती
भूके मजबूर की आवाज फिजाओं में
भगवान, है क्या तू इस दुनिया में
एक बार दरस करा फिर तू
बैठा सवालो की पोटरी पे,
आके हमे रास्ता दिखा न तू

सब कहते है तुम हो ,
फिर क्यों बोलबाला शैतानो का
डगमगाते इस विश्वास को
आके रोशनी दिखा न तू
एक बार आके इनको अपने दरस करा फिर तू

11 comments:

  1. mast hai keep writing such a nice blog:)

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  2. bahut khoob likha hai aapne.......anterman ki vaytha tatha bhagwan mein logon ke girte viswas ko bahut hi khoobsurat shabdon mein goontha hai .......keep it up.......

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  3. Thanks Gandharva Bhai, Bilkul sahi samjhe hai aap :)

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  4. One word "AWESOME" in capital letters :).

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  5. thanks gaurav dada, anu and raj bhai

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  6. mast hai :D but mujhe kuch palle nahi pada :D

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  7. बैठा सवालो की पोटरी पे - Ishwar ko is sentence se achcha koi aur sentence describe nahi kar sakta.

    Awesome :)

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