उस हर पल का सोचू
जिसमे काटे इतने जनम
क्योंकि साथ तुम थी
चल पड़ता था घुमंतू
न जाने किस डोर चले
क्योंकि साथ तुम थी
लड़ पड़ता ज़माने से
उलझे वक़्त के तूफानों से
क्योंकि साथ तुम थी
मेरे आँखों के वो बूंद
छुपे थे तहखाने में
क्योंकि साथ तुम थी
मैंने धुन छेरा जब भी
एक बेजोड़ कहानी बनी
क्योंकि साथ तुम थी
रिश्तो के इस डोर में
मेरे अल्फाज़ सुहाने सजते
क्योंकि साथ तुम थी
आज अचानक खडा पाया
उस चौराहे के डंडी पे
हाथ बढाया छूने को तो
वो तुम नहीं, वोह तुम नहीं
नज़्म अधुरा रह गया मेरा
खोया है सरगम साज कही
क्योंकि आज तुम नहीं
कैद है इन् पलकों में
न जाने अद्बुने खवाब सारे
क्योंकि आज तुम नहीं
दे रहा हूँ मैं आवाज
सारे ज़माने से ले के आस
आ जा थाम ले फिर ये हाथ
एक अधूरा खवाब हमारा
नाम देना इस रिश्ते को
आके जोड़ आज कुछ ऐसे अल्फाज़
आके जोड़ आज कुछ ऐसे अल्फाज़ !!
waah
ReplyDeleteachhi kiavita.........
बहुत उम्दा!!
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