इस जिंदगी की दौड़ में,
कहाँ चले आये है हम,
आगे बढने की इस होड़ में,
न जाने क्या कुछ पीछे छोड़ आये है हम
घर द्वार की बात क्या बोलू
इत्ते रिश्ते नाते तोड़ आये है हम ।
हमारे बचपन में हम
क्या क्या सोचा करते थे
आज चचा के बागीचे का फल
कल क्या क्या पाबंधी तोडेंगे
खुले आसमान के निचे
नंगे पाव कित्ता दौड़ा करेंगे ।
कोर लेके बैठी मैया
सोच बेटा कुछ तो खायेगा
उनकी बातें छोर , दिमाग में
दिन भर क्या क्या गुल खिलायेगा
स्कूल में मास्टर पूछे तो
होमवर्क में क्या दिखलायेगा
फिर आज शाम पगडण्डी पे
चिंटूवा भी तो टकराएगा
कल गुल्ली डंडे में जो हारा था
उसका हिसाब चुकायेगा ।
न जाने ऐसे खेलते कूदते
क्या क्या दिन गुजारे थे
न ज़माने की बंदिशे थी
हम तो ऐसे आवारे थे ।
फिर भी सपने देखते बड़े की
जाने कब वोह दिन आएगा ,
जब सब लोग सलामी देके
हमे साहब कह बुलाएगा ।
आज जब वोह दिन है आया
खुद को क्यों इत्ता अकेला पाया
पच्पैसी लमंचुस की खुशी
ये डॉलर का पिज्जा भी न दे पाया
शाहिल था पड़ा
फिर भी न जाने
था मैं प्यासा खड़ा
इन रेत के टीलों
में खुद की परछाई धुन्दता
ये भी तो मेरा ही घर है
जैसे लगता सावन में पतझर है
अपनी झोली में जब देखा
वोह भी अभी तक अध्-भर है
फिर भी खुश होने में संकोच है
आज लगता नाकाफी हर कोष है ।
आज अपने मन के पास है पहुंचे
चार मन सोना हाथों में भींचे
आँख में आंसू थे हमारे
और मुख पर थे मेरे अपमान
चंद सिक्कों के मोह में
क्या से क्या हो गया इंसान ।
मेरे मन ने मुझे बिठा के
दिया आज ये आहम ज्ञान ।
इस भरी दुनिया में,
देखो तो सब कुछ कपट है
समय अटल है
धन बस चल है
जितनी खुसी बेचीं धनार्जन में
सो क़र्ज़ चुकाना है जीवन में ।
इस जिंदगी की दौड़ में,
कहाँ चले आये है हम ।
yes this is the reality of life sayad aap ese jada ru-baru ho.
ReplyDeleteit is the reality of life sayad aap is reallity se jada parichit ho
ReplyDeleteजिंदगी को रूप आपने सामने रख दिया है ...आपकी कलम जुदा है
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पच्पैसी लमंचुस की खुशी
ReplyDeleteये डॉलर का पिज्जा भी न दे पाया
Ye crore rupiye wali baat hai..
इस जिंदगी की दौड़ में,
ReplyDeleteकहाँ चले आये है हम ।
सच है ... बहुत बढिया लिखा है।
chha gaye sarkar....
ReplyDeleteKya likhe hain! ekdum bawal.....
Bachpan taaza kar diya aapne...
Aise hi likhte rahiye :)
आगे बढने की इस होड़ में,
ReplyDeleteन जाने क्या कुछ पीछे छोड़ आये है हम
aap sabhi logo ka bahut bahut dhanyawad.apne kalam se aap logo ke samaksh kuch acha pesh karne ki koshish karta rahunga
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ReplyDeleteआगे बढने की इस होड़ में,
ReplyDeleteन जाने क्या कुछ पीछे छोड़ आये है हम
aanso le aaye aap aankho me...
satya vachan abhineet bhai..likhne mein bhi kuch waisa hi ho raha tha
ReplyDeleteJindagi ki daud is simply awesome ...m feelin nostalgic nw ...kip it up buddy. In fact u cn bcm full time writer if u cn carry forward dat standard.
ReplyDeleteबहुत ही सधी हुई अभिव्यक्ति है| ऐसा लग रहा जैसे खुद ही जी रहे इन पलों को, और क्यूँ न हो, हमने भी कभी न कभी ऐसे पल जिए हैं| हमने भी उस टुकड़े के लिए चाँद को ठुकराया था|
ReplyDeleteआज जब वोह दिन है आया
खुद को क्यों इत्ता अकेला पाया
पच्पैसी लमंचुस की खुशी
ये डॉलर का पिज्जा भी न दे पाया
इमानदारी से सच्चाई बयान करना शायद इसी को कहते हैं| मर्मस्पर्शी| सुन्दर अभिव्यक्ति|
बस एक गुजारिश है भाईजान, थोडा ठहर कर लिखें, और विस्तार दें, पंख फैलाने दें भावनाओं को, रोकें नहीं|
धन्यवाद|
इस भरी दुनिया में,
ReplyDeleteदेखो तो सब कुछ कपट है
Bahut achha line hai bhai..kash ees kavita se log prerna lete to jindagi ke rang kuchh aur hi hote..very nicely explained thoughts...keep it up.
thanks shashwat bhai , aage se hadbadayenge nai..
ReplyDeletethanks gaurav bhai..koshish jari rahegi..
thanks kalpana di
पच्पैसी लमंचुस की खुशी
ReplyDeleteये डॉलर का पिज्जा भी न दे पाया
sahi baat hai...
फिर भी सपने देखते बड़े की जाने कब वोह दिन आएगा , जब सब लोग सलामी देके हमे साहब कह बुलाएगा ।
ReplyDeletewoh sapna hi kya joh poora hi naa ho.. aur woh addmi hi kya joh sapna naa dekhe :D
waaah mere laal sahi likha hai... :D