Friday, April 10, 2009

क्या जाता ?

आये न तुम मेरे आँगन, अंतिम रुक्सत देने
चार फूल मेरी लाश पर, चढा देते तो क्या जाता?

दूर रहते हो हमेशा , मेरे जिक्रे महफिल से
दो अश्क मेरी याद में ,बहा देते तो क्या जाता...?

आज आये हो मेरी मय्यत पर , नकाब डाल कर सनम
मुर्दों को चाँद का टुकडा, दिखा देते तो क्या जाता?

लोगो ने सवाल किया की , किसका है ये जनाज़ा
मरने वाला कौन था , बता देते तो क्या जाता ?

कह रही है मेरी कहानी , तेरे हाथ की हीना
किसी और दिन ये किस्सा , सुना देते तो क्या जाता ?

मेरी साँस रुक गयी , दम निकलना था निकल गयी
एक बार मेरी दुआ को तुम । हाथ उठा देते तो क्या जाता ?

जान दे दी मैंने , तेरी ही मोहब्बत में
इक चिराग तुम मजार पर, जला देते तो क्या जाता ?

7 comments:

  1. "मेरी साँस रुक गयी , दम निकलना था निकल गयी
    एक बार मेरी दुआ को तुम । हाथ उठा देते तो क्या जाता ?"

    आह, मरते वक़्त भी तर्क-ए-तमन्ना? क्या दिल है और कैसा दिलवाला|

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  2. jab tu jite ji hi meri nahi hui,
    to meri maiyat pe in ghadiyali ansuo ka matlab?

    Achcha likhe hain, lekin mujhe kisi ko itna bhav dena achchha nahi lagta.

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  3. haan mujhe bhi.........
    ekdum sahi baat !!

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  4. bhav to dil se nikalte hai bandhuwon. aur dil to nadan hota hai.. :)

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  5. This one is vry cheesy man ...plz dnt mind may b I have different taste.

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  6. hahahah..gaurav babu aapka taste ekdam sahi hai..yes this one is cheesy..

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  7. ye tooo mch hi ho gaya............Let go Melbourne!!!

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