Monday, September 6, 2010

अस्तित्व !!

यूँ एकटक सा

खुले आसमान की पनाहों में

क्या देखता बत्तक सा ?



बेचैनी ये नहीं ,

किसी की भूख भी नहीं

कैसी ये प्यास है ,

मन को क्यों एक आस है ?



किसकी तलाश है?

शायद एक यार की?

दोमूही नहीं,

एक्मूही तलवार की !



जी हाँ,

एक स्वतंत्र विचार की

नदी पार लगाये वो पतवार की !



कहाँ है वो ?

मुझ में तो नहीं ?

टटोलो ,

झकझोरो खुद को !



क्या मैं नहीं हूँ ,

तेरा सबसे करीबी यार ?

मुँह खोले अब क्या है बैठा ?

अब पहचाना अपने अस्तित्व को ?

2 comments:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई

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  2. Awesome poem..Astitva..

    tera sabse kareebi yaar, muh khole ab kya baitha hai..ab pehchaan apne astitva ko..superb~

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