यूँ एकटक सा
खुले आसमान की पनाहों में
क्या देखता बत्तक सा ?
बेचैनी ये नहीं ,
किसी की भूख भी नहीं
कैसी ये प्यास है ,
मन को क्यों एक आस है ?
किसकी तलाश है?
शायद एक यार की?
दोमूही नहीं,
एक्मूही तलवार की !
जी हाँ,
एक स्वतंत्र विचार की
नदी पार लगाये वो पतवार की !
कहाँ है वो ?
मुझ में तो नहीं ?
टटोलो ,
झकझोरो खुद को !
क्या मैं नहीं हूँ ,
तेरा सबसे करीबी यार ?
मुँह खोले अब क्या है बैठा ?
अब पहचाना अपने अस्तित्व को ?
सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
ReplyDeleteAwesome poem..Astitva..
ReplyDeletetera sabse kareebi yaar, muh khole ab kya baitha hai..ab pehchaan apne astitva ko..superb~