Tuesday, April 17, 2012

जानशी कम से कम इतना तो करम कर ,
जो ये तेरी जुल्फे परेशान रहा करती है ,
बता किसके उजड़े दिल में है ठिकाना तेरा !!

Sunday, April 15, 2012

सो रहे मानुषो , सुनो आलाप पुकारता हूँ
भरे पूरे आवेश में ,
रगों में दौड़ते लहू को आज ललकारता हूँ !!

उठो साथियों , देश हित में अंगार मांगता हूँ
तुमसे कुछ और नहीं,
तुम्हारी चढ़ती जवानी का श्रृंगार मांगता हूँ !!
न जाने क्यों बेचैन है हवाएं , सब ओर मायूशी छाई है ,
कोई तो अब हमे बताएं , हमारी कस्ती किस ओर चली है !!
हे दाता, पुकारता मैं ,सोयो अरमानो को जगा दे
इन् बुझती हुई आत्माओ को संजीवनी पीले दे !!
न जाने कबसे इनके मन की उमंगें यूँ असहाय जल रही है
रौशनी तो है,
पर अरमान-आरज़ू की लाशें दिन के अँधेरे में निकल रही है !!
दिखा तांडव .. चला एक तीर फिर तू, सीनों के आर पार करदे
इन् सुसप्तु शरीर के हिमशीत प्राण में आज अंगार स्वच्छ भर दे !!
यूँ कब तक मुहं फेर के मुस्कुराओगे ,
मैं तो बहता पानी हूँ तेरे जिंदगी का ,
आज न कल तो अपने आँखों से बहाओगे तुम !!
आज उसकी मौत पे,जमाना ख्वाहिशे-मन्नत मिला
यकायक कोई अपनी मौते-नुमाइश करने वाला मिला
वो टूटता तारा देख लगा,चलो बरसो बाद तो कोई मुझ सा मिला !!
क्या हुआ अगर आज नाराज मेरा सवेरा और अँधेरी मेरी साँझ है ,
कभी तो वो मौसम आएगा, जब वक़्त मेरा भी दिया जलाएगी !!
जितने चेहरे, उतने रंग
न जाने कैसी है ये हुडदंग...
कभी कभी तो लगता, सब एक चलावा
रिश्ते नाते कुछ नहीं, बस झूठे और स्वार्थ का झमेला
ज़िन्दगी के मंडप में अब भी कंवारी ख़ुशी का लगा है मेला !!
किया जिसने बदनाम हमे इन् तंग गलियों में, आज उनकी इज्ज़त ढकने को दो टुकड़े लाज कहाँ से लाऊं
अफ़सोस कर रहे वो मेरे सहारे की खोज में , दे सकूँ उनको भरोसा वो अलफ़ाज़ और आवाज कहाँ से लाऊं !!
मुद्दत हुई गुजरे हुए इन् राहों से ,
उम्मीद शायद आज भी हैं ,मुरझाई सी
अभी तलक नीर है मेरे नयोनों में,
झलकाता नहीं,तट्नी नयनों की हैं बुझाई सी

Thursday, April 12, 2012

कितनो को है जाना ,कितनो को है परखा !
समझ लो ,
हर किस्से की जुबान हैं मेरी ये ख़ामोशी !!
जिंदगी अब न आती है रास, बस दिल में आता यही ख़यालात !
तुम रहती तो ऐसा होता, मेरा घर भी एक घर जैसा होता !!
मिटाना ही है तो मिटा इस कदर, न मिले कोई सुराग ज़माने को
जलाना है तो जला इस कदर , तरस जाये लोग हमारी राख को !!
तलाशता है "प्रभु" जब भी अपने वजूद को ,
कभी गुमनाम मिलता ,तो कभी बदनाम मिलता !
‎"प्रभु" इतनी भी नफरत न करो ज़माने से की ,
कल को अपनी सांसे भी बगावत करने लगे !!
घर में आग लगी तो क्या गम है "प्रभु",
आग तो मुर्दों का आखिरी अंजाम होता है !!
वो कहते थे कि तू हमारी जरुरत है "प्रभु",
मुझे क्या पता था कि मैं उनकी जरूरतों का नाम था !!
वो देख के हमे अपनी नज़रे आसमान में टिका लेते ,
एक दिन जब "प्रभु" आसमान में होगा, वो नज़रे झुकाते मिलेंगे !!
मुझे मेरी औकात बताने वाले,
ढोते हो सिक्के अपनी हथेली के तरे, जिनमे न चमक है न भनक है !!
मौसम कुछ बदला है "प्रभु",
बुँदे भी कुछ गिरी हैं आँगन में,
लगता है वो धुंधली तस्वीर आज फिर से, कुछ साफ़ नज़र आएगी !!

Sunday, February 5, 2012

सूखे पत्ते

ये सूखे पत्ते गुलाब की,
पुस्तक के पन्नो में बेजार से
चुपके चुपके चरमराते ,
कहते है एक वक़्त की कहानी
जब जिंदगी में बस तू थी,
तू ही थी जीने की रवानी
हवा तक थम जाती थी ,
बदल लेती अपना रास्ता
ऐसा प्यार , गुजर न पाती हमारे बीच की जवानी से !!

सब तो याद है अब भी हमे,
पर याद नहीं आता वो साँझ
न जाने किसने बोया,
की प्यार हुआ हमारा बाँझ
क्यों मिला कैसे मिला,
बस मिला है हमे हार
पर ये कैसी हार ?
ये कैसा था हमारा प्यार ?
की तुमने ही थाम ली , मेरे लिए बदले की कटार !!


अब बस बचा रखा है , सूखे पत्ते और वो एहसास
वो पत्ते गुलाब की, जो मेरी जिंदगी सी बेजार हुई !!