सो रहे मानुषो , सुनो आलाप पुकारता हूँ
भरे पूरे आवेश में ,
रगों में दौड़ते लहू को आज ललकारता हूँ !!
उठो साथियों , देश हित में अंगार मांगता हूँ
तुमसे कुछ और नहीं,
तुम्हारी चढ़ती जवानी का श्रृंगार मांगता हूँ !!
भरे पूरे आवेश में ,
रगों में दौड़ते लहू को आज ललकारता हूँ !!
उठो साथियों , देश हित में अंगार मांगता हूँ
तुमसे कुछ और नहीं,
तुम्हारी चढ़ती जवानी का श्रृंगार मांगता हूँ !!
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