Thursday, December 24, 2009

I like your....

I like your innocent face
having so much of charm & glaze !!
Be it the lock of hairs that
falls on your face,
without shades on your eyes
yet the twinkle that you hide !!

objectivity in your eyes
that sparkle on your ear ring
smile on your face
and the emotion you cant hide
yet i am bewildered as
thy confidence i cant decide

Thoughts we believe in
are similar
Purity of feelings that you carry
will even give hope to despair
Innocence is the thing with your talk
yet having so much of maturity in stock

I like the kind of fragrance
that you spread with your presence
i am flattered in such essence
will pray god for thy
give thy all reason to smile
as a star in the lovely sky

Wednesday, October 14, 2009

दरस करा फिर तू

मैंने उन गलियों में रात गुजारी है
जिनमे 'आशा' ने भी हिम्मत हारी है
हर अश्क को मैंने देखा है ,
बिन मांगे दर्द को झेला है
एक मामूल इंसान पिघल गया,
तू पत्थर बन क्यों बैठा है

तेरे नाम से ज्यादा गूंजती
भूके मजबूर की आवाज फिजाओं में
भगवान, है क्या तू इस दुनिया में
एक बार दरस करा फिर तू
बैठा सवालो की पोटरी पे,
आके हमे रास्ता दिखा न तू

सब कहते है तुम हो ,
फिर क्यों बोलबाला शैतानो का
डगमगाते इस विश्वास को
आके रोशनी दिखा न तू
एक बार आके इनको अपने दरस करा फिर तू

Wednesday, July 22, 2009

कुछ ऐसे अल्फाज़

उस हर पल का सोचू
जिसमे काटे इतने जनम
क्योंकि साथ तुम थी

चल पड़ता था घुमंतू
न जाने किस डोर चले
क्योंकि साथ तुम थी

लड़ पड़ता ज़माने से
उलझे वक़्त के तूफानों से
क्योंकि साथ तुम थी

मेरे आँखों के वो बूंद
छुपे थे तहखाने में
क्योंकि साथ तुम थी

मैंने धुन छेरा जब भी
एक बेजोड़ कहानी बनी
क्योंकि साथ तुम थी

रिश्तो के इस डोर में
मेरे अल्फाज़ सुहाने सजते
क्योंकि साथ तुम थी

आज अचानक खडा पाया
उस चौराहे के डंडी पे
हाथ बढाया छूने को तो
वो तुम नहीं, वोह तुम नहीं

नज़्म अधुरा रह गया मेरा
खोया है सरगम साज कही
क्योंकि आज तुम नहीं

कैद है इन् पलकों में
न जाने अद्बुने खवाब सारे
क्योंकि आज तुम नहीं

दे रहा हूँ मैं आवाज
सारे ज़माने से ले के आस
आ जा थाम ले फिर ये हाथ

एक अधूरा खवाब हमारा
नाम देना इस रिश्ते को
आके जोड़ आज कुछ ऐसे अल्फाज़

आके जोड़ आज कुछ ऐसे अल्फाज़ !!

Monday, April 13, 2009

जिंदगी की दौड़

इस जिंदगी की दौड़ में,
कहाँ चले आये है हम,
आगे बढने की इस होड़ में,
न जाने क्या कुछ पीछे छोड़ आये है हम
घर द्वार की बात क्या बोलू
इत्ते रिश्ते नाते तोड़ आये है हम ।

हमारे बचपन में हम
क्या क्या सोचा करते थे
आज चचा के बागीचे का फल
कल क्या क्या पाबंधी तोडेंगे
खुले आसमान के निचे
नंगे पाव कित्ता दौड़ा करेंगे ।

कोर लेके बैठी मैया
सोच बेटा कुछ तो खायेगा
उनकी बातें छोर , दिमाग में
दिन भर क्या क्या गुल खिलायेगा
स्कूल में मास्टर पूछे तो
होमवर्क में क्या दिखलायेगा
फिर आज शाम पगडण्डी पे
चिंटूवा भी तो टकराएगा
कल गुल्ली डंडे में जो हारा था
उसका हिसाब चुकायेगा ।

न जाने ऐसे खेलते कूदते
क्या क्या दिन गुजारे थे
न ज़माने की बंदिशे थी
हम तो ऐसे आवारे थे ।

फिर भी सपने देखते बड़े की
जाने कब वोह दिन आएगा ,
जब सब लोग सलामी देके
हमे साहब कह बुलाएगा ।

आज जब वोह दिन है आया
खुद को क्यों इत्ता अकेला पाया
पच्पैसी लमंचुस की खुशी
ये डॉलर का पिज्जा भी न दे पाया

शाहिल था पड़ा
फिर भी न जाने
था मैं प्यासा खड़ा
इन रेत के टीलों
में खुद की परछाई धुन्दता

ये भी तो मेरा ही घर है
जैसे लगता सावन में पतझर है
अपनी झोली में जब देखा
वोह भी अभी तक अध्-भर है
फिर भी खुश होने में संकोच है
आज लगता नाकाफी हर कोष है ।

आज अपने मन के पास है पहुंचे
चार मन सोना हाथों में भींचे
आँख में आंसू थे हमारे
और मुख पर थे मेरे अपमान
चंद सिक्कों के मोह में
क्या से क्या हो गया इंसान ।

मेरे मन ने मुझे बिठा के
दिया आज ये आहम ज्ञान ।

इस भरी दुनिया में,
देखो तो सब कुछ कपट है
समय अटल है
धन बस चल है
जितनी खुसी बेचीं धनार्जन में
सो क़र्ज़ चुकाना है जीवन में ।

इस जिंदगी की दौड़ में,
कहाँ चले आये है हम ।

Friday, April 10, 2009

क्या जाता ?

आये न तुम मेरे आँगन, अंतिम रुक्सत देने
चार फूल मेरी लाश पर, चढा देते तो क्या जाता?

दूर रहते हो हमेशा , मेरे जिक्रे महफिल से
दो अश्क मेरी याद में ,बहा देते तो क्या जाता...?

आज आये हो मेरी मय्यत पर , नकाब डाल कर सनम
मुर्दों को चाँद का टुकडा, दिखा देते तो क्या जाता?

लोगो ने सवाल किया की , किसका है ये जनाज़ा
मरने वाला कौन था , बता देते तो क्या जाता ?

कह रही है मेरी कहानी , तेरे हाथ की हीना
किसी और दिन ये किस्सा , सुना देते तो क्या जाता ?

मेरी साँस रुक गयी , दम निकलना था निकल गयी
एक बार मेरी दुआ को तुम । हाथ उठा देते तो क्या जाता ?

जान दे दी मैंने , तेरी ही मोहब्बत में
इक चिराग तुम मजार पर, जला देते तो क्या जाता ?

Thursday, April 9, 2009

न जाने क्यों

सोया हूँ क्या मैं, शायद सब को ऐसा लगता है
टूटे हुए खवाबों में न जाने क्यों , हकीक़त धुंडने की कोशिश करता हूँ

रिश्ते क्या है , शायद इसका एहसास नहीं है
पत्थर के दिलों न जाने क्यों , मैं मोहब्बत धुंडने की कोशिश करता हूँ

नादान हूँ क्या मैं , शायद अब तक ये भी नहीं समझा
इन बेजान बुतों में न जाने क्यों , इबादत धुंडने की कोशिश करता हूँ

मेरे जज्बातों की कीमत , शायद यहाँ कुछ भी नहीं है
बेईमानी के बाजारों में न जाने क्यों , शराफत धुंडने की कोशिश करता हूँ

इस अजनबी दुनिया में , शायद कोई भी अपना नहीं
गैरों की आँखों में न जाने क्यों, अपनी सूरत धुंडने की कोशिश करता हूँ

उम्मीद की थी प्यार की बस , शायद यही भूल थी मेरी
गिरते हुए अश्कों में न जाने क्यों, अपनी हसरत धुंडने की कोशिश करता हूँ

Saturday, April 4, 2009

शायद

धुंधली हो चुकी है आशाएं , तेरी राह तकते तकते
आंसू है पलकों में , अब शायद बिछा न पाउँगा

धूमिल हो गयी स्वाभिमान , सबके ताने सुनते सुनते
तेरे सजदे में , अब शायद सर झुका न पाउँगा

मिट चुकी है जस्बात , मन को कहते कहते
तुम हो दिल में , अब शायद बहला न पाउँगा

भर चुकी है गमें जिंदगी, तुझे याद करते करते
इस दर्द में, अब शायद मुस्कुरा न पाउँगा

ख़त्म हो गयी ऐतबार, तेरा विश्वास करते करते
झूठे रिश्ते में, अब शायद नाम दे न पाउँगा

रो चुकी है बहुत आँखें, तेरी यादों में जीते जीते
खुश्क आँखों में बूंद, अब शायद बहा न पाउँगा

टूट चुकी है साँसें , मरने का एहसास करते करते
बिखरे है वादे , अब शायद निभा न पाउँगा

घुस चुकी है कायरता , खुद को थामते थामते
तेरे प्यार में , अब शायद जान दे न पाउँगा

Friday, February 6, 2009

जख्म

तस्वीर के सामने तेरे हम कभी सर रख कर सो जाते
ऐसे ही न जाने हमारे कितने दिन गुजर जाते

प्यार जताने का हमे इल्म ना था वरना
इस तरह लुटाते की अमर हो जाते

देखना ही था अगर मेरी आवारगी का आलम
बोल देती, लहू बनके तेरे रगों में उतर जाते

जाना ही था तुझे तो, आंख मिला के तो जाते
मेरी आँखों में ,दिल के जख्म तो तुझे नजर आते

Monday, February 2, 2009

माँ का क़र्ज़ चुकाना है

लाल हुई धरती मैया का तन , मुझे कैसे करके भी जाना है
आस लेके देखती मैया , बेटा कब तुम आओगे
देर हो चुकी है बहुत , अब मुहे किस हाल में पहुचाओगे

मैला हुआ है उनका आँचल , मैं बेटा कैसे कहलाऊंगा
सरहद पे न ही सही , गलियारों से भेडिया भगाउंगा

भगत सुभाष के कुर्बानी को, आज फिर रंग में लाना है
खून के एक एक कतरे से , माँ को हार चढाना है

सन् ५७ की क्रांति बिगुल , एक बार फिर बजानी है
एक बार फिर मिलके सबको , मैया की लाज बचानी है

जाने दे मुझको अब यारो , मुझे माँ के पास जाना है
देके अपना बलिदान , उनका क़र्ज़ चुकाना है

Friday, January 30, 2009

सवाल

हर एक के सवाल का मैं, जवाब क्या देता ,
क्या और क्यों हूँ मैं, ये हिसाब क्या देता

जो कुछ पल के एहसास को , ना रख सके महफूज़,
मैं उनके हाथ , अपनी जिंदगी की डोर क्या देता

बदले जिनके रंग ,मौसम से भी पहले,
उनको अपनी चाहत का जाम क्या देता

जो छोर दिए मुझको, बना खुशी को मोहताज़ ,
उस रिश्ते को मैं, अपना नाम क्या देता

हर एक के सवाल का मैं, जवाब क्या देता

अब तो आ जा अपने ननिहाल

माँ ने दी है आवाज ,सुनो मेरे लल्ला ,
धरती हो चुकी है लाल ..
कहाँ हो तुम , अब तो आ जा अपने ननिहाल ..

सूनी बिया मेरी , अब कितना रुलाओगे ..
बेबसी का देके वास्ता ,कब तक मुह छुपाओगे ..

आँखें तरसी मेरी ,क्यों ना आया तुझे मेरा ख्याल ..
अब तो आ जा ,देख अपने घर का हाल

थमने को है साँसे मेरी ,अब तो आके बागडोर संभाल ..
आ जा , अब तो आ जा सुनके मेरे दिल का हाल

आ जा , आ जा मेरे नंदगोपाल ...
अब तो आ जा अपने ननिहाल ..

तमन्ना

जी रहा था जिस् तमन्ना में, हो गई ओझल वही
उठा दाबत लगा बनाने, रह गई तस्वीर अधूरी

लब्जों के इस हेर फेर ने, बना दिया था फ़कीर मुझे
हुई ना पूरी मेरी आरजू , लूट गए अरमान मेरे

जिंदगी के इस उधेरबून में, मिलि एक कोहिनूर मुझे
ख्यालों के मंजर में मैंने , उससे अपने हार बुने

सोच के ही इतराता मैं , मुझे भी ऐसा श्रृंगार मिले
लग रहा था पुरे हो गए , जिंदगी के खवाब मेरे

खिल उठी थी जिंदगी मेरी , उसने ऐसे रंग भरे
दिया तबज्जो मेरे प्यार को , कहके उसने यार मुझे

जी रहा था जिस् तमन्ना में, मिल गई वही मुझे
बिन दबात उठाये, मिल गई पूरी तस्वीर मुझे

एहसास

जिंदगी के सूनेपन को , जरूरत थी एक एहसास की

एहसास जगी तो एक बार फिर , जीने की प्यास लगी


दिख रहा था आसमा मुझे, इन् छोटी सी निगाहों में

पाने की उम्मीद लिए , निकला फिर उन् राहों में


एक डगर से दूजे पे , फिरता रहा बंजारों सा

दिख रही थी एक आकृति , जो था मेरे खयालों सा


दौड़ पड़ा मैं बड़े कदम से, कोशिश की करीब जाने की

हाथ बढाया छूने को तो , ओझल हो गई वो पलछिन सी


चीख पडा तो पाया ख़ुद को , अपने बिस्तर की बाहों में

जिंदगी ने भर ली थी , फिर मुझे अपनी पनाहों में